panchak me death hone par kya kare
प्रायः आपने अपने घर में या पास पड़ोस में अपने बड़ो बुजुर्गो से सुना होगा की अमुक कार्य को आज मत करो यह पंचक काल है यह अशुभ समय है इसमें कार्य प्रारंभ किया तो सफलता प्राप्त नहीं होगी अथवा इस कार्य को पुनः पांच बार सम्पन्न करना पड़ेगा ऐसा करना पड़ेगा ऐसा हम प्रायः सुनते आये है लेकिन क्या आप जानते है यह पंचक क्या है !इस पंचक को इतना अशुभ क्यों मन जाता है शास्त्रों में इस समयकाल में कुछ भी कार्य करना निषेध माना गया है | यह तक की किसी की मृत्यु भी हो जेने पर विशेष नियम बताये गए है panchak me death hone par kya kare और कैसे करना चाहिए आइये हम आपको बताते है |
धनिष्ढा नक्षत्र से लेकर रेवती नक्षत्र पर्यन्त जो पांच नक्षत्र है ये सभी सदैव अशुभ होते है नक्षत्रो में ब्रामण आदि सभी जाती यो का दहा संस्कार या बलिकर्म नहीं करना चाहिए इन नक्षत्रो में प्राणी के लिए जल भी प्रदान करना उचित नहीं है ऐसा करने से वह अशुभ हो जाता है दुख्यार्थ (मृत ) स्वजन हो तो भी इस काल में लोक (शव ) यात्रा नहीं करनी चाहिए स्वजन को पंचक की शांति क्ले बाद ही मृतक का शव संस्कार करना चाहिए अन्यथा पुत्र और सहगोत्रीयो को उस अशुभ पंचक का कुप्रभाव से दुःख ही झेलना पड़ता है जो मनुष्य इन नक्षत्रो में मृत्यु को प्राप्त होता है उसके घर में प्रायः हानि होती है | इस पंचक की अवधि में जो प्राणी मर जाता है उसका दहा संस्कार तत्संबंधित नक्षत्र के मंत्र से आहुति प्रदान करके नक्षत्र के मध्यकाल में किया जा सकता है सङ्घ की गयी आहुति पुण्यदायनी होती है तीर्त्झ में किया गया दहा उत्तम होता है ब्रामणो को नियमपूर्वक यह कार्य मंत्रसहित विधिपूर्वक करना चाहिए वे यथाविधि अभिमंत्रित कुश की चार पुतलिकाओ को बना करकर शव के संमिप में रख दे उसके बाद उन पुतलिकाओ के सहित उस शव का दहा शंस्कार करे इसके बाद सूतक के समाप्त होने पर पुत्र को शांतिकर्म भी करना चाहिए |
जो मनुष्य इन धनिष्ठादि पांच नक्षत्रो में मरता है उसको उत्तम गति प्राप्त नहीं होती है अतः एव उसके उद्देश्य से टिल गौ सुवर्ण और घृत का दान विप्रो को देना चाहिए ऐसा करने से सभी प्रकार के उपद्रवों का विनाश हो जाता है अशौच के समाप्त होने पर मृत प्राणी अपने सत्पुत्रो से सद्गति प्राप्त करता है जो पात्र पादुका झत्र सुवर्ण मुद्रा वस्त्र तथा दक्षिणा ब्राम्मण को देना चाहिए वह सभी पापो को दूर करने वाली होती है पंचक में मरे हुहे युवा और वृद्धो औधर्योधर्वदेहिक संस्कार प्रय्चितपूर्वक जो मनुष्य नहीं करता है उसके लिए विभिन विघ्न जन्म लेते है |
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पंचक में मृत्यु प्राप्त के कृत्य
पंचकर्म मृत्यु होने पर दहा संस्कार की विधि भगवन के द्वारा गरुड़जी को बताई गयी है |
मास के प्रारम्भ में धनिष्ठा नक्षत्र के अर्थ भाग से लेकर रेवती नक्षत्र तक का समय पंचक कल का कहलाता है इसको सदैव दोषपूर्ण और अशुभ माना गया है ैसमे मरे हुए व्यक्ति का दहा संस्कार इस का ल में करना मना है यह काल सभी प्राणियों में दुःख उत्पन करने वाला होता है | पंचकाल समाप्त होने पर ही मृतक के सभी कर्म करने चाहिए अन्यथा पुत्र एव परविक जानो के लिए यहॉ कष्टप्रद होता है इन नक्षत्रो में मृतक का दहा शंस्कार करना हो तो कुश के मानवाकार चार पुतले बनाकर नक्षत्रो मंत्रो से उनको अभिमंत्रित शंस्कार होना चाहिए अशौच के समाप्त हो जाने पर मृत के पुत्रो द्वारा पंचक शांति भी करनी चाहिए मृतक के पुत्रो को प्राणी के कल्याण हेतु तिल गौ स्वर्ण और घी का दान देना चाहिए समस्त विघ्नो का विनाश करने के लिए ब्रामणो को भोजन पादुका झत्र स्वर्णमुद्रा और वस्त्र का दान देना चाहिए यह दान मृतक के समस्त पापो का विनाश होता है |
पंचक में करने वाले पांच कार्य
१ धनिष्ठा नक्षत्र में घास लकड़ी आदि ईंधन जमा नहीं करना चाहिए इससे अग्नि का भय रहता है |
२ दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाइये क्युकी दक्षिण दिशा यम की दिशा मणि गई है इन नक्षत्रो में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक मन गया है |
३ रेवती नक्षत्र में घर की झत डालना धन की हानि और कलेश करने वाला होता है |
४ चारपाई नहीं बनानी चाहिए
५ पंचक में शव का अंतिम शंस्कार नहीं करना चाहिए ऐसा मन जाता है की पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से उस कुटुम्ब में पांच मृत्यु और हो जाती है (यदि परिशर्तिवश किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक अवधि में हो जाती है तो सव के साथ पांच अन्य पुतले आते या कुशा से बनाकर अर्थी पर रखे और इन पांचो का भी शव की तरह पूर्ण विधि विधान शंस्कार करे तो परिवार में बाद में और मृत्यु नहीं होती एव पंचक दोष समाप्त हो जाता है ऐसा शास्त्रोक्त विधान है )