shraaddh darpan mein kya kre

 

shraaddh darpan mein kya kre

श्राद्ध कर्म पितरो की संतुष्टि के लिए किया जाता है जो की लगभग सभी हिन्दू  लोग करते है परन्तु श्राद्ध कर्म करने के भी कुछ नियम और सावधानिया है | जिनका की ध्यान रखना चाहिए परन्तु अज्ञानतवंश अथवा लापरवाही के कारन कई बार कुछ विधानों का उल्ल्घन हो जाता है जिसके कारन पितरो को संतुष्टि नहीं मिलती है हमें श्राद्ध कर्म करते समय किन विशेष बातो का ध्यान रखना चाहिए | shraaddh darpan mein kya kre आइये जाने | 

shraaddh darpan mein kya kre


श्राद्धकर्म प्रत्येक घर में किया जाता है इसके करने के पीछे मुख्य भावना पितृगण की संतुस्टि एव स्व कल्याण की होती है shraaddh darpan के विधान के सम्बन्ध में शास्त्रों में बहुत विधान वर्णन किया गया है | लेकिन जनसामान्य के लिए तो यह असंभव सा कार्य है ऐसे में सभी लोग अपने विवेक के अनुसार एव प्राप्त जानकारी के अनुसार श्राद्ध कर्म सम्पादित करते है लेकिन कई बाते ऐसी होती है जिनका अज्ञानतावश ध्यान नहीं रख पाने से श्राद्ध कर्म का पूर्ण पुण्य प्राप्त नहीं हो पाता है हम यह ऐसी ही कतिपय करणीय अकरणीय बाते दे रहे है जिनका ध्यान रखने पर पितृगण संतुष्ट होते है एव  श्राद्ध करता पर पूर्ण प्रसन होकर उसे शुभासित प्रदान करते है | 

१ श्राद्ध कर्ता को श्राद्ध के दिन ताम्बूल भक्छण (पान खाना )तैलमर्दन (सरीर पर तेल लगाना ) उपवास  या दूसरे के यहां खाना  नहीं करना चाहिए एव ब्रमचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है | 

२ श्राद्ध में भोजन करने वाले ब्राम्मण को यात्रा भार ढोना परिश्रम दान देना प्रतिग्रह हवन एव पुनः भोजन करना अदि कृत्य नहीं करने चाहिए एव उसे ब्रमचर्य व्रत का पालन करना चाहिए 

३ श्राद्ध वाले दिन लोहे वाले पात्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए वर्तमान सर्वस्त्र प्रचलित स्टील में भी लोहे का अंश अधिक होता है अतः इसका भी प्रयोग नहीं करना चाहिए यदि पूर्णतः परित्याग संभव नहीं हो तो ब्राम्मण भोजन के समय तो अवस्य ही लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए भोजन यदि चांदी के बर्तनो में या पत्तल दोनों में करवाए तो श्रेष्ठ माना  गया  है  

४ shraaddh darpan में प्रयोग में ली जाने वाली कुशा चिटा में बिझाई गई रास्ते में पढ़ी हुए पितृतर्पण या ब्राम्याक्झ में काम में ली गई बिझौने गन्दगी या आसन से निकली गई या पिंडो के निचे राखी गई कुशा नहीं होनी चाहिए | 

५ श्राद्ध में पितृकार्य के लिए श्रीखंड चन्दन खस  कपूर सहित सफ़ेद चन्दन का [प्रयोग  करना उत्तम रहता है | अन्य कस्तूरी रक्तचंदन गोरोचन सल्लक पूतिक अदि की गंध का प्रयोग नहीं करना चाहिए | 

६ कदम्ब केवड़ा मिलसिरि बेलपत्र करवीर  लाल एव काळा रंग के पुष्प तेज गंध वाले  पुष्प एव गंधरहित पुष्पों का प्रयोग श्राद्ध में निषिद्ध है | 

७ श्राद्ध में चोर पतित धूर्त मांस बेचने वाले व्यापारी नौकर किनखी  काळा दत्त वाले गुरुद्रोही सुत्रपति शुल्क लेकर पढ़ने वाला काना जुहारी अँधा कुस्ती सीखने वाले एव नपुंशक ब्राम्मण को नहीं बुलाना चाहिए | 

८ जिस भोजन को सन्याशी ने या कुत्ते ने देख लिए हो जिसमे बाल और कीड़े पढ़ जाये एव बाशी अथवा दुर्गन्धित हो उस भोजन का प्रयोग नहीं करना चाहिए | 

९ मसूर अरहर राजमाष गाजर कतु गोल लौकी बैगन शलजम हींग प्याज लहसुन  काला नमक काली जीरा सिंगाड़ा जामुन पिप्पली सुपारी कुलथी कैथ  महुहा अलसी पिली सरसो चना एव मॉस इनमे से किसी भी वास्तु का प्रयोग नहीं करना श्राद्ध में और भोजन में भी नहीं करना चाहिए | 

१० श्राद्ध करने के लिए कृष्णपक्ष एव अपरान्ह  को श्रेष्ट मन जाता है | 

११ चतुर्दशी को श्राद्ध नहीं करना चाहिए लेकिन जो पितर युद्ध में या शस्त्रादि से मरे गए हो उनके लिए चतुर्दसी के दिन श्राद्ध करना शुभ होता  है | 

१२ दिन का आठवा  मुहुरुत काल कुतप  कहलाता है इस समय में सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय में पितरो के लिए दियस गया दान अक्षय होता है 

१३ मध्यान्हकाल खङ्गपात्र नेपाल कम्बल चाँदी कुशल तिल गौ एव दौहित्र ये कुतप के नाम से जाने जाते हैट श्राद्ध में प्रयोग करने पर शुभ फलदायी होते है | 

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१४ shraaddh  काल में मन एव तन को बहार एव भीतर से पवित्र रखना चाहिए क्रोध एव जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए एव श्राद्ध एकांत में करना चाहिए | 

१५ श्राद्ध का भोजन स्त्री को नहीं करना चाहिए 

१६ नाना मामा  भांजा,  गुरु, श्वसुर  दोहित्र  जमाता बांधव ऋत्विज एव यज्ञकर्ता इन दसो को श्राद्ध में भोजन करवाना शुभ रहता है | 

१७ श्राद्ध में  जौ,  धन , तिल ,  गेहू ,  मुंग  ,सरसो , का तेल कंगनी आम  बेल अनार बिजोरा पुराण आवला घीर परवल चिरोंजी बेर इत्र जौ मटर एव कचनार का प्रयोग करना अत्यंत शुभ होता है | 

१८ श्राद्ध भूमि में सबसे पहले काले तिलो  को बिखेरना चाहिए जिस श्राद्ध में तिलो का प्रयोग किया जाता है वह अक्षय फल देता है | 

१९ पितरो को चांदी  सोना एव ताम्बा अत्यंत प्रिय होता है अतः इनका प्रयोग श्राद्ध  में किया जय तो अत्यंत शुभ होता है पितरो को तर्पण करते समय अदि तर्जनी अंगुली में चांदी या सोने की अंगूठी धारण कर ली जय तो वह श्राद्ध लाखो करोडो गुना फलदायक हो जाता है | 

२० श्राद्ध के पिण्डो को गौ ब्रामण या बकरी को खिला देना चाहिए | 

अंत में यही खा गया है की श्राद्ध में श्रद्धा की ही सर्वाधिक प्रधानता होती है अतः जो भी कर्म आप करे उसे पूर्ण श्रद्धा से करे एव अंत में जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए झमा मांग ले  धन्यवाद 

 








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