mirgi ke daure ka teras ke upay in hindi

mirgi ke daure ka teras ke upay in hindi

मिरगी एक ऐसा रोग है जिसमे व्यक्ति अचानक जमीन  पर गिर कर प्रायः अर्ध्द मूर्छितावस्था में रहता है रोगी को इसका पूर्वाभाष भी नहीं होता है की उसको मिरगी का दौरा  पड़ने वाला है इसमें रोगी हफ़ता है मुँह से झाग उगलता है उसकी आखे फटी की फ़टी रह जाती है और पलके स्थिर रह जाती है तथा गर्दन अकड़ कर टेढ़ी हो जाती है रोगी हाथ पैर पटकता है उसके दाँत भींच जाते है और मुढ़िया कस जाती है और वह अजीब सी आवाज करने लगता है दौरे के समय रोगी को सांस लेने में भी कष्ट होता है लेकिन २० - २५ मिनट के बाद रोगी की सांस ठीक चलने लगती है और रोगी होश में आ जाता है कभी कभी रोगी होश आने के बाद तुरंत सो जाता है | प्राचीन आयुर्वेदिक आचार्यो के मतानुसार चिंता क्रोध शोक छोप आदि मानशिक संतापों से दूषित हुए वात पित और कफ मस्तिष्क को प्रभावित करता है जिससे स्मरण शक्ति नष्ट हो जाती है और मिरगी रोग बन जाता है  mirgi ke daure ka teras ke upay in hindi में  इसके अतिरिक्त अधिक शारारिक और मानसिक श्रम अधिक शराब एव नशा हस्त मैथुन आदि भी रोग के कारन हो सकते है रोग की शुरुआत प्रायः शक्रामक बुखार सर में चोट और आतो में अधिक कीड़े होने के बाद हो जाती है | 

mirgi ke daure ka teras ke upay in hindi


आयुर्वेद के अनुसार मिरगी रोग चार प्रकार की होती है 

१ वात की मिरगी 

२ कफ की मिरगी 

३ पिट की मिरगी 

४ सत्रिपात की मिरगी 

वात की मिरगी 

यदि रोगी के मुँह से झाग आये दत्त भींच जाए कपकपी झुटे  सांस तेजी से चले तो वात की मिरगी रोग समझे 

कफ की मिरगी 

यदि रोगी को त्वचा का रंग सफ़ेद हो जाय मुँह से सफ़ेद झाग निकले आखो और मुँह का रंग भी सफ़ेद हो तो कफ का मिरगी रोग समझे 

पित की मिरगी 

यदि रोगी के मुँह से पीला पीला झाग आये शरीर का रंग पीला पड़  जाये तो उसे पित की मिरगी का रोगी समझना चाहिए | 

सत्रिपात  की मिरगी 

यदि उपयुक्त सारे लक्षण पाए जाये तो सत्रिपात   का मिरगी रोग समझना चाहिए 

इसके अतिरिक्त दुर्घटना वश भी रोग हो सकता है यदि शरीर अधिक फड़के और भौहें चढ़ी रहे आखे पलट जाये तो ऐसी स्थिति को असाथ्य मिरगी कहते है इसमें रोगी के बचने की उम्मीद कम हो जाती है 

मिरगी  का दौरा पड़ने पर रोगी के कसे हुहे कपडे ढीले कर दे उसे मोटे गधे पर सुला दे तकिया लगा कर सर  ऊचा  कर दे याद रखे रोगी को पेट के बल न लिटाए इससे रोगी की सास रुकने के कारन मृत्यु भी हो सकती है दातो के बिच कपडे की पोटली लगा दे और मरीज को हवादार जगह पर रखे | 

घरेलु उपचार 

तिलो के साथ लहसन खिलाये इससे वात का मिरगी रोग धीरे धीरे दूर हो जाता है 

दूध के साथ शतावरी खाने से साधारण पित का मिरगी रोग दूर होता है | 

शहद में ब्राम्ही का रस मिलकर लेने से कफ का मिरगी रोग ठीक हो जाता है 

राई और सरसो को गो मूत्र में पीस क्र शरीर पर लेप करे इससे हर प्रकार की मिरगी में लाभ मिलता है | 

मीठे अनार के रस में मिश्री मिला कर पिलाने से बेहोशी दूर होती है | 

नीबू के साथ हींग चूसने से मिरगी का दौरा नहीं पड़ता | 

अकरवारा को सिरके में मिला कर शहद के साथ प्रतिदिन प्रातः प्रातः चाटने मिरगी दूर होती है | 

लहसुन की कलियों को दूध में उबाल कर पिने से पुराणी मिरगी भी दूर होती है | 

लहसुन कूट कर सुघने से मिरगी के दौरे की बेहोशी दूर होती है | 

वच को बारीक़ पीस कर बब्राम्ही अथवा शखाहुली के रस या पुराने गुड़ के साथ ले तो मिरगी रोग में आराम मिलता है | 

पीपल चित्रक पीपरामूल त्रिफला चव्य सोढ वायविडंग सीधा नमक अजवायन धनिया सफ़ेद जीरा सभी को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना ले और सुबह शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ मिलता है | 

सावधानिया 

मिरगी  के रोगी को प्रायः सभी प्रकार के  नशो  को त्याग देना चाहिए उसे चाय काफी उत्तेजक द्रव मांसाहारी भोजन से बिलकुल दूर रहना चाहिए और सोने से दो घटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए विवाहित स्त्री-पुरुषो को ब्रमचर्य का पालन करना चाहिए और अविवाहित स्त्री पुरुष कृतिम मैथुन से बचे उन्हें रोग पैदा करने वाले सभी मूल कारणों से बचना जैसे कब्ज थकान तनाव और मनोविकार | 

mirgi ke daure ka teras ke upay in hindi

ज्योतिष ग्रन्थ जातक तत्व के अनुसार मिर्गी के कुछ जोतिष्य योग  इस प्रकार है | 

चंद्र और राहु अष्टम भाव में हो तो जातक को मिर्गी हो सकती है | 

सूर्य चंद्र मंगल लग्न और अष्टम भाव में साथ साथ हो और अशुभ ग्रहो से दृष्ट हो तो मिर्गी रोग होता है | 

राहु लग्न में हो और चंद्र षष्ठ भाव में हो तो जातक को मिर्गी होती है | 

जन्म  के समय चंद्र या सूर्य ग्रहण होने पर भी रोग होता  है | 

षष्ट या अष्टम भाव शनि मंगल से युक्त हो तो मिर्गी होती है | 

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विभिन्न लग्नो में मिर्गी रोग के कारण 

मेष लग्न :

राहु बुध लग्न में हो सूर्य द्वादश में शनि से दृष्ट  हो और मंगल षष्ठ भाव में शनि के साथ हो तो जातक  को दौरे पड़ते है | 

वृष लग्न :

सूर्य लग्न में रहे चंद्र और केतु अष्टम भाव में और लग्नेश शुक्र राहु  से युक्त हो मंगल गुरु के साथ शनि से दृष्ट  हो तो जातक को मिर्गी के दौरे पड़ते है | 

मिथुन लग्न :

 चंद्र  पूर्ण अस्त लग्न में हो मंगल दशम भाव में पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में रहे और राहु द्वादश भाव में होने से मिर्गी रोग होता है | 

कर्क लग्न :

कर्क लग्न मंगल सूर्य चंद्र लग्न में हो या अष्टम भाव में हो और अस्त हो तथा लग्न एव लंगेश राहु से दृष्ट हो तो मिर्गी रोग होता है | 

सिंह लग्न :

लग्नेश सूर्य और मंगल अष्टम भाव में हो चंद्र लग्न में राहु और केतु से दृस्ट हो तो मिर्गी रोग होता है | 

कन्या लग्न :

लग्न में हस्त नक्षत्र उदय हो और चंद्र पंचम भाव में अस्त हो और राहु से युक्त हो तथा मंगल लग्न में हो तो मिर्गी रोग होता है | 

तुला लग्न :

लग्न में विशाखा नक्षत्र उदित हो गुरु और शुक्र सप्तम भाव में सूर्य से पूर्ण अस्त हो और मंगल चंद्र राहु और केतु के प्रभाव में हो तो मिर्गी रोग होता है | 

वृश्चिक लग्न :

सूर्य द्वादश भाव मंगल के साथ अस्त अवस्था में हो राहु लग्न में बुध के साथ हो लग्न में विशाखा नक्षत्र उदित हो और चंद्र षष्ट भाव में हो तो मिर्गी होती है | 

धनु लग्न :

लग्न में मूल नक्षत्र उदित हो और बुध तथा चंद्र लग्न में हो बुध लग्नाशो पर ही गुरु मंगल त्रिक स्थानों में राहु केतु से दृस्ट एव युक्त हो तो मिर्गी रोग होता है | 

मकर लग्न :

लग्नेश राहु से दृष्ट एव युक्त हो सूर्य चंद्र लग्न में हो शनि मंगल अष्टम भाव में हो तो मिर्गी रोग होता है | 

कुंभ लग्न :

लग्नेश शनि षष्ट भाव में सूर्य से पूर्ण अस्त मंगल चंद्र राहु दशम भाव में हो तो मिर्गी रोग होता है | 

मीन  लग्न :

लग्नेश झटे या अष्टम भाव में हो बुध लग्न में सूर्य के साथ हो मंगल अष्टम में राहु केतु से युक्त एव दृष्ट हो तो मिर्गी रोग होता है | 

उपयुक्त सभी योगो में सबधित ग्रहो की दशांतदर्शा एव गोचर के अनुसार रोग की उतपति होती है उपयुक्त सभी योग चलित कुंडली पर आधारित है | 

ज्योतिष का दृश्टिकोण ग्रह नक्षत्रो पर आधारित होता है ऐसा सभी जानते है ज्योतिष में सूर्य मंगल के दुष्प्रभाव में रहने के कारन मिर्गी के दौरे पड़ते है सूर्य और मंगल ऊर्जा के करक है शरीर में ऊर्जा का प्रभाव सूर्य और मंगल से ही होता है जब हमारे शरीर में ऊर्जा के प्रवाह में अवरोध प्रकट होता है तो मिर्गी का दौरा पड़ता है जैसे बिजली घटने बठने के समय बल्ब की रौशनी फड़फड़ाती है बिजली के तार में जो ऊर्जा प्रव्हाहित होती है उसमे अवरोध होने से सपर्क टूटता जुड़ता रहता  है जिससे घटना बढ़ना होता है इसी तरह हमारे शरीर के उस ऊर्जा प्रवाह में अवरोध मिर्गी का कारन बनता है  जो हमे सूर्य और मंगल से मिलती है चंद्र ऊर्जा के प्रवाह में सहायक होता है इसलिए चंद्र का भी दुष्प्रवाह में रहना रोग के होने में सहायक होता है इसके साथ लग्न का भी दुष्प्रभाव में रहना रोग का साकेत देता है इस प्रकार जन्मकुंडली में सूर्य चंद्र मंगल और लग्नेश के दूषित प्रभावो में रहने से मिर्गी का रोग होता है | 

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